वर्षा

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बदरिया थम-थमकर झर री !

बदरिया थम-थनकर झर री ! सागर पर मत भरे अभागन गागर को भर री ! बदरिया थम-थमकर झर री ! एक-एक, दो-दो बूँदों में बंधा सिन्धु का मेला, सहस-सहस बन विहंस उठा है यह बूँदों का रेला। तू खोने से नहीं बावरी, पाने से डर री ! बदरिया थम-थमकर झर री! जग आये घनश्याम देख तो, देख गगन पर आगी, तूने बूंद, नींद खितिहर ने साथ-साथ ही त्यागी। रही कजलियों की कोमलता  झंझा को बर री ! बदरिया थम-थमकर झर री !

Gopalsinghnepali 275x153.jpg

इस रिमझिम में चाँद हँसा है

1. खिड़की खोल जगत को देखो,  बाहर भीतर घनावरण है शीतल है वाताश, द्रवित है दिशा, छटा यह निरावरण है मेघ यान चल रहे झूमकर शैल-शिखर पर प्रथम चरण है! बूँद-बूँद बन छहर रहा यह जीवन का जो जन्म-मरण है! जो सागर के अतल-वितल में  गर्जन-तर्जन है, हलचल है; वही ज्वार है उठा यहाँ पर शिखर-शिखर में चहल-पहल है! 2. फुहियों में पत्तियाँ नहाई आज पाँव तक भीगे तरुवर, उछल शिखर से शिखर पवन भी  झूल रहा तरु की बाँहों पर; निद्रा भंग, दामिनी चौंकी, झलक...

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बादल आए झूम के

बादल आए झूम के। आसमान में घूम के। बिजली चमकी चम्म-चम। पानी बरसा झम्म-झम।। हवा चली है जोर से। नाचे जन-मन मोर-से। फिसला पाँव अरर-धम। चारों खाने चित्त हम।। मेघ गरजते घर्र-घों। मेढक गाते टर्र-टों। माँझी है उस पार रे। नाव पड़ी मँझधार रे।। शाला में अवकाश है। सुंदर सावन मास है। हाट-बाट सब बंद है। अच्छा जी आनंद है।। पंछी भीगे पंख ले। ढूँढ़ रहे हैं घोंसले। नद-नाले नाद पुकारते।। हिरन चले मैदान से। गीदड़ निकले माँद से। गया सिपाही फौज में।...

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