वह तोड़ती पत्थर; देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर। कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; श्याम तन, भर बंधा यौवन, नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार:- सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार। चढ़ रही थी धूप; गर्मियों के दिन, दिवा का तमतमाता रूप; उठी झुलसाती हुई लू रुई ज्यों जलती हुई भू, गर्द चिनगीं छा गई, प्रायः हुई दुपहर :- वह तोड़ती...
वह आता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता-- दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये, बायें से वे मलते हुए पेट को चलते, और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये। भूख से सूख ओठ जब जाते दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?-- घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते। चाट...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...