काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस भैया को दियो बाबुल महले दो-महले हमको दियो परदेस अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ जित हाँके हँक जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ घर-घर माँगे हैं जैहें अरे, लखिय बाबुल मोरे काहे को ब्याहे बिदेस कोठे तले से पलकिया जो...
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...