पत्थर

Suryakant tripathi nirala 275x153.jpg

तोड़ती पत्थर

वह तोड़ती पत्थर; देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर- वह तोड़ती पत्थर।   कोई न छायादार पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; श्याम तन, भर बंधा यौवन, नत नयन, प्रिय-कर्म-रत मन, गुरु हथौड़ा हाथ, करती बार-बार प्रहार:- सामने तरु-मालिका अट्टालिका, प्राकार।   चढ़ रही थी धूप; गर्मियों के दिन,  दिवा का तमतमाता रूप; उठी झुलसाती हुई लू रुई ज्यों जलती हुई भू, गर्द चिनगीं छा गई, प्रायः हुई दुपहर :- वह तोड़ती...

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