तसवीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी ये तेरी तरह मुझ से तो शर्मा न सकेगी। मैं बात करूँगा तो ये खामोश रहेगी सीने से लगा लूँगा तो ये कुछ न कहेगी आराम वो क्या देगी जो तड़पा न सकेगी। ये आँखें हैं ठहरी हुई चंचल वो निगाहें ये हाथ हैं सहमे हुए और मस्त वो बाहें पर्छाईं तो इंसान के काम आ न सकेगी। इन होंठों को फ़ैय्याज़ मैं कुछ दे न सकूँगा इस ज़ुल्फ़ को मैं हाथ में भी ले न सकूँगा उलझी हुई रातों को ये सुलझा न सकेगी।
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...