गीत

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रैनी चढ़ी रसूल की

रैनी चढ़ी रसूल की सो रंग मौला के हाथ। जिसके कपरे रंग दिए सो धन धन वाके भाग।। खुसरो बाजी प्रेम की मैं खेलूँ पी के संग। जीत गयी तो पिया मोरे हारी पी के संग।। चकवा चकवी दो जने इन मत मारो कोय। ये मारे करतार के रैन बिछोया होय।। खुसरो ऐसी पीत कर जैसे हिन्दू जोय। पूत पराए कारने जल जल कोयला होय।। खुसरवा दर इश्क बाजी कम जि हिन्दू जन माबाश। कज़ बराए मुर्दा मा सोज़द जान-ए-खेस रा।। उजवल बरन अधीन तन एक चित्त दो ध्यान। देखत में तो साधु है पर...

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केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

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हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

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रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

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अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

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भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

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