हम सब सुमन एक उपवन के एक हमारी धरती सबकी जिसकी मिट्टी में जन्मे हम मिली एक ही धूप हमें है सींचे गए एक जल से हम। पले हुए हैं झूल-झूल कर पलनों में हम एक पवन के हम सब सुमन एक उपवन के।। रंग रंग के रूप हमारे अलग-अलग है क्यारी-क्यारी लेकिन हम सबसे मिलकर ही इस उपवन की शोभा सारी एक हमारा माली हम सब रहते नीचे एक गगन के हम सब सुमन एक उपवन के।। सूरज एक हमारा, जिसकी किरणें उसकी कली खिलातीं, एक हमारा...
ये भगवान के डाकिये हैं, जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं। हम तो समझ नहीं पाते हैं, मगर उनकी लायी चिट्ठियाँ पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं। हम तो केवल यह आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को सुगन्ध भेजती है। और वह सौरभ हवा में तैरती हुए पक्षियों की पाँखों पर तिरता है। और एक देश का भाप दूसरे देश का पानी बनकर गिरता है।
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...