ईश्वर

Gopaldasneeraj 275x153.jpg

जितना कम सामान रहेगा

जितना कम सामान रहेगा उतना सफ़र आसान रहेगा जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा उससे मिलना नामुमक़िन है जब तक ख़ुद का ध्यान रहेगा हाथ मिलें और दिल न मिलें ऐसे में नुक़सान रहेगा जब तक मन्दिर और मस्जिद हैं मुश्क़िल में इन्सान रहेगा ‘नीरज' तो कल यहाँ न होगा उसका गीत-विधान रहेगा

2011 05 21 at 19 08 18 275x153.jpg

विपदा से मेरी रक्षा करना

विपदा से मेरी रक्षा करना मेरी यह प्रार्थना नहीं, विपदा से मैं डरूँ नहीं, इतना ही करना।   दुख-ताप से व्यथित चित्त को भले न दे सको सान्त्वना मैं दुख पर पा सकूँ जय।   भले मेरी सहायता न जुटे अपना बल कभी न टूटे, जग में उठाता रहा क्षति और पाई सिर्फ़ वंचना तो भी मन में कभी न मानूँ क्षय।   तुम मेरी रक्षा करना यह मेरी नहीं प्रार्थना, पार हो सकूँ बस इतनी शक्ति चाहूँ।   मेरा भार हल्का कर भले न दे सको सान्त्वना...

1 275x153.jpg

मुझे झुका दो, मुझे झुका दो

मुझे झुका दो,मुझे झुका दो   अपने चरण तल में, करो मन विगलित, जीवन विसर्जित नयन जल में. अकेली हूँ मैं अहंकार के उच्च शिखर पर- माटी कर दो पथरीला आसन, तोड़ो बलपूर्वक. मुझे झुका दो,मुझे झुका दो   अपने चरण तल में, किस पर अभिमान करूँ व्यर्थ जीवन में भरे घर में शून्य हूँ मैं बिन तुम्हारे. दिनभर का कर्म डूबा मेरा अतल में अहं की, सांध्य-वेला की पूजा भी हो न जाए विफल कहीं. मुझे झुका दो,मुझे झुका दो   अपने चरण तल में.

Maithilisharan gupt 275x153.jpg

गुणगान

तेरे घर के द्वार बहुत हैं, किसमें हो कर आऊं मैं? सब द्वारों पर भीड़ मची है, कैसे भीतर जाऊं मैं?   द्बारपाल भय दिखलाते हैं, कुछ ही जन जाने पाते हैं, शेष सभी धक्के खाते हैं, क्यों कर घुसने पाऊं मैं? तेरे घर के द्वार बहुत हैं, किसमें हो कर आऊं मैं?   तेरी विभव कल्पना कर के, उसके वर्णन से मन भर के, भूल रहे हैं जन बाहर के कैसे तुझे भुलाऊं मैं? तेरे घर के द्वार बहुत हैं, किसमें हो कर आऊं मैं?   बीत...

Sumitranandan pant 275x153.jpg

जग-जीवन में जो चिर महान

जग-जीवन में जो चिर महान, सौंदर्य-पूर्ण औ सत्य-प्राण, मैं उसका प्रेमी बनूँ, नाथ! जिसमें मानव-हित हो समान! जिससे जीवन में मिले शक्ति, छूटे भय, संशय, अंध-भक्ति; मैं वह प्रकाश बन सकूँ, नाथ! मिट जावें जिसमें अखिल व्यक्ति! दिशि-दिशि में प्रेम-प्रभा प्रसार, हर भेद-भाव का अंधकार, मैं खोल सकूँ चिर मुँदे, नाथ! मानव के उर के स्वर्ग-द्वार! पाकर, प्रभु! तुमसे अमर दान करने मानव का परित्राण, ला सकूँ विश्व में एक बार फिर...

सबसे लोकप्रिय

poet-image

केशर की, कलि की पिचकारी

केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

poet-image

हो कहाँ अग्निधर्मा नवीन ऋषियों

कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...

poet-image

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी

रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...

poet-image

अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी

हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...

poet-image

भारत महिमा

हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...

ad-image