है बहुत अंधियार अब सूरज निकलना चाहिए जिस तरह से भी हो ये मौसम बदलना चाहिए रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह अब जनाज़ा ज़ोर से उनका निकलना चाहिए अब भी कुछ लोगो ने बेची है न अपनी आत्मा ये पतन का सिलसिला कुछ और चलना चाहिए फूल बन कर जो जिया वो यहाँ मसला गया जीस्त को फ़ौलाद के साँचे में ढलना चाहिए छिनता हो जब तुम्हारा हक़ कोई उस वक़्त तो आँख से आँसू नहीं शोला निकलना चाहिए दिल जवां, सपने जवाँ, मौसम जवाँ, शब् भी जवाँ तुझको मुझसे...
बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए खदेड़कर धुंध स्याह, नभ साफ़ मिलना चाहिए भ्रष्ट तंत्र भ्रष्टाचार, भ्रष्ट ही सबके विचार हर एक जन अब इसके, खिलाफ मिलना चाहिए भड़काए नफरत के शोले, सरजमीं पर तुमने बहुत जर्रा -जर्रा हमें इसका अब, आफताब मिलना चाहिए झूठे वादे झूठे इरादे यहाँ, अब नहीं चल पायेंगे बच्चे बच्चे का पूरा, हर ख्वाब मिलना चाहिए उखाड़ फैंको इस तंत्र को स्वतंत्र हो तुम अगर लोकतंत्र का हमें अब, पूरा स्वाद मिलना चाहिए
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...