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स्वतंत्रता संग्राम

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युगावतार गांधी

चल पड़े जिधर दो डग मग में  चल पड़े कोटि पग उसी ओर, पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि  गड़ गये कोटि दृग उसी ओर,   जिसके शिर पर निज धरा हाथ  उसके शिर-रक्षक कोटि हाथ,  जिस पर निज मस्तक झुका दिया  झुक गये उसी पर कोटि माथ;  हे कोटिचरण, हे कोटिबाहु!  हे कोटिरूप, हे कोटिनाम!  तुम एकमूर्ति, प्रतिमूर्ति कोटि  हे कोटिमूर्ति, तुमको प्रणाम!   युग बढ़ा तुम्हारी हँसी देख  युग हटा तुम्हारी भृकुटि देख,  तुम अचल मेखला बन भू की  खींचते काल पर अमिट रेख;  तुम...

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