बहुत हो चुका अब हमें इन्साफ मिलना चाहिए खदेड़कर धुंध स्याह, नभ साफ़ मिलना चाहिए भ्रष्ट तंत्र भ्रष्टाचार, भ्रष्ट ही सबके विचार हर एक जन अब इसके, खिलाफ मिलना चाहिए भड़काए नफरत के शोले, सरजमीं पर तुमने बहुत जर्रा -जर्रा हमें इसका अब, आफताब मिलना चाहिए झूठे वादे झूठे इरादे यहाँ, अब नहीं चल पायेंगे बच्चे बच्चे का पूरा, हर ख्वाब मिलना चाहिए उखाड़ फैंको इस तंत्र को स्वतंत्र हो तुम अगर लोकतंत्र का हमें अब, पूरा स्वाद मिलना चाहिए
केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...
कहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियों। श्रवण...
रंज की जब गुफ्तगू होने लगी आप...
हमने खोला आलमारी को, बुला रहे हैं...
हमारे संचय में था दान, अतिथि थे...