बचपन

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मणियों का जूता

मम्मी पर है ऐसा जूता, जिसको लाया इब्न बतूता! यह जूता परियों का जूता, यह जूता मणियों का जूता, मोती की लड़ियों का जूता, ढाई तोले सबने कूता, इसको लाया इब्न बतूता! इस जूते की बात निराली, पल में भरता पल में खाली, बच्चे देख बजाते ताली, अजब-अनूठा है यह जूता, इसको लाया इब्न बतूता! इसमें अपने पाँव फँसाकर, हम जाते हैं नानी के घर, इसे पहनकर भग जाता डर, इसको रोके किसमें बूता, इसको लाया इब्न बतूता!

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बस्ता मुझसे भारी है

यह कैसी लाचारी है, बस्ता मुझसे भारी है! कंधा रोज भड़कता है, जाने क्या-क्या बकता है, लाइलाज बीमारी है, बस्ता मुझसे भारी है! जब भी मैं पढ़ने जाता, जगह-जगह ठोकर खाता, बस्ता क्या अलमारी है, बस्ता मुझसे भारी है! कान फटे सुनते सहते, मुझे देखकर सब कहते, बालक नहीं, मदारी है, बस्ता मुझसे भारी है!

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यह कदंब का पेड़

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।  मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।    ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।  किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।    तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।  उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।    वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।  अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।।    बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।  माँ, तब...

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मेरा नया बचपन

बार-बार आती है मुझको मधुर याद बचपन तेरी।  गया ले गया तू जीवन की सबसे मस्त खुशी मेरी॥    चिंता-रहित खेलना-खाना वह फिरना निर्भय स्वच्छंद।  कैसे भूला जा सकता है बचपन का अतुलित आनंद?    ऊँच-नीच का ज्ञान नहीं था छुआछूत किसने जानी?  बनी हुई थी वहाँ झोंपड़ी और चीथड़ों में रानी॥    किये दूध के कुल्ले मैंने चूस अँगूठा सुधा पिया।  किलकारी किल्लोल मचाकर सूना घर आबाद किया॥    रोना और मचल जाना भी क्या आनंद दिखाते थे।  बड़े-बड़े...

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