पूजा

Makhanlal chaturvedi 275x153.jpg

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं

अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं।   चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं उठने,उठ पड़ने की बात रही साँसों से गीत बे-अनुपात रही   बागों में पंखनियाँ झूल रहीं कुछ अपना, कुछ सपना भूल रहीं फूल-फूल धूल लिये मुँह बाँधे किसको अनुहार रही चुप साधे   दौड़ के विहार उठो अमित रंग तू ही `श्रीरंग' कि मत कर विलम्ब बँधी-सी पलकें मुँह खोल उठीं कितना रोका कि मौन बोल उठीं आहों का रथ माना...

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केशर की, कलि की पिचकारीः पात-पात...

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