चकोरी

Aarsi prasad singh 275x153.jpg

चाँद को देखो

चाँद को देखो चकोरी के नयन से माप चाहे जो धरा की हो गगन से।   मेघ के हर ताल पर   नव नृत्य करता   राग जो मल्हार   अम्बर में उमड़ता आ रहा इंगित मयूरी के चरण से चाँद को देखो चकोरी के नयन से।   दाह कितनी   दीप के वरदान में है   आह कितनी   प्रेम के अभिमान में है पूछ लो सुकुमार शलभों की जलन से चाँद को देखो चकोरी के नयन से।   लाभ अपना   वासना पहचानती है   किन्तु मिटना   प्रीति केवल जानती है माँग ला रे अमृत जीवन का मरण से चाँद...

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