राम की शक्ति पूजा

रवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर ...

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सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'

कहकर देखा तूणीर ब्रह्मशर रहा झलक,

ले लिया हस्त, लक-लक करता वह महाफलक।

ले अस्त्र वाम पर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन

ले अर्पित करने को उद्यत हो गये सुमन

जिस क्षण बँध गया बेधने को दृग दृढ़ निश्चय,

काँपा ब्रह्माण्ड, हुआ देवी का त्वरित उदय-

"साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम!"

कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।

देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर

वामपद असुर-स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।

ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,

मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।

हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,

दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,

मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर

श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वर वन्दन कर।

 

"होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।"

कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

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