एक समान

गगन के सजे-बजे बादल नयन में सोया गंगाजल चाँद से क्या कम प्यारा है चाँद के माथे का काजल ...

Ramanath awasthi 600x350.jpg

रमानाथ अवस्थी

डाल के रंग-बिरंगे फूल

 

राह के दुबले-पतले शूल

 

मुझे लगते सब एक समान!

 

 

न मैंने दुख से माँगी दया

 

न सुख ही मुझसे नाखुश गया

 

पुरानी दुनिया के भी बीच-

 

रहा मैं सदा नया का नया

 

 

धरा के ऊँचे-नीचे बोल

 

व्योम के चाँद-सूर्य अनमोल

 

मुझे लगते सब एक समान!

 

 

गगन के सजे-बजे बादल

 

नयन में सोया गंगाजल

 

चाँद से क्या कम प्यारा है

 

चाँद के माथे का काजल

 

 

नखत से उजले-उजले वेश

 

चिता पर जलते काले केश

 

मुझे लगते सब एक समान!

 

 

सुबह तक जलता हुआ चिराग

 

रात भर जागा हुआ सुहाग

 

मुझे समझाता बारम्बार

 

अंत में हाथ रहेगी आग

 

 

इसलिए छोटे-मोटे काम

 

बड़े या मामूली आराम

 

मुझे लगते सब एक समान!

 

 

किरण के अनदेखे प्रिय चरण

 

फूल पर करते जब संचरण

 

तभी कोकिल के स्वर में गीत-

 

गूँथकर गाता है मधुबन

 

 

नये फूलों पर सोये छंद

 

मधुप की गलियाँ औ' मकरंद

 

मुझे लगते सब एक समान!

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