शक्ल जब बस गई आँखों में

क्या कहा तुमने, कि हम जाते हैं, दिल अपना संभाल ये तड़प कर निकल आएगा संभलना कैसा ...

Akbar allahabadi 600x350.jpg

अकबर इलाहाबादी

शक्ल जब बस गई आँखों में तो छुपना कैसा

दिल में घर करके मेरी जान ये परदा कैसा

 

आप मौजूद हैं हाज़िर है ये सामान-ए-निशात

उज़्र सब तै हैं बस अब वादा-ए-फ़रदा कैसा

 

तेरी आँखों की जो तारीफ़ सुनी है मुझसे

घूरती है मुझे ये नर्गिस-ए-शेहला कैसा

 

ऐ मसीहा यूँ ही करते हैं मरीज़ों का इलाज

कुछ न पूछा कि है बीमार हमारा कैसा

 

क्या कहा तुमने, कि हम जाते हैं, दिल अपना संभाल

ये तड़प कर निकल आएगा संभलना कैसा


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